Research & Policy पब्लिक स्कूलों और होम स्कूल के बीच तुलना
By Anand Mishra
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जब कभी हम पढाई के लिए सोचते हैं तो सबसे पहले हमारी उम्र, हमारी समझ के अनुसार जिसे हम सहजता से समझ सके वैसा पाठ्यक्रम व किताबे हमें दी जाती है और यह सब हर व्यक्ति नहीं कर सकता जबकि इसके लिए सरकार अनुभवी शिक्षाविदों को इस काम में लगाती जिनके द्वारा पाठ्यक्रम डिजाईन किया जाता है | यह एक खर्चीला कार्य होता है जो होम स्कूल में सब के लिए संभव नहीं हैं |

आयु के आधार पर राष्ट्रीय/ राज्य स्तर के पाठ्यक्रम

जब भी कभी किसी पाठ्यक्रम को डिजाईन किया जाता है तो विशेषकर उम्र और वर्ग को ध्यान में रखा जाता है | जैसे कक्षा 1-2 तक के बच्चे जिनकी उम्र अमूमन 6-7 वर्ष होती है वह खासकर चित्रों ,विडिओ या कविता इत्यादि से ज्यादा सीखते है| इसीलिए जब राष्ट्रीय स्तर या राज्य स्तर पर पाठ्यक्रम की रूपरेखा तय की जाती है तो इसका विशेष ध्यान दिया जाता है | होम स्कूल  में इसका ध्यान रख पाना अत्यधिक जटिल हो जाता है |
 
शिक्षण व्यवस्था में बच्चों को बेहतर ढंग से पढ़ाने के लिए जो संसाधन व सामग्रियां उपलब्ध कराई जाती हैं वह बेहद खर्चीली होती है यह किसी एक व्यक्ति के लिए कर पाना प्रायः व्यवहारिक नहीं होता  किन्तु पब्लिक स्कूल के लिए यह आसान होता है | आइये ऐसे कई संसाधन व गतिविधियों के बारे में चर्चा करते है:

वित्तीय खर्च 

वर्तमान समय में शिक्षण का तौर तरीका पहले की अपेक्षा काफी बदल गया है और यह तरीका अत्यधिक खर्चीला हो गया है | अधिकांशतः शिक्षण संस्थाएं मौखिक कम और गतिविधि आधारित टीचिंग और लर्निंग तरीके को बढ़ चढ़कर अपना रही हैं | इसमें एक तो बच्चों का कक्षा में मन लगा रहता है ऊपर से विषय भी आसानी से समझ में आता है | भारत में आज भी 70% आबादी  गाँव में रहती है जिनकी आय बहुत काम होती है अतः होम स्कूल में यह खर्च उठा पाना बहुत मुश्किल होगा | इस तरह के खर्च कुछ इस प्रकार हैं: 

  • प्रयोगशाला : इससे आशय है “आओ करके सीखें “ बच्चे जो कक्षा में पढ़ते हैं उनको प्रयोगशाला में स्वयं प्रयोग कर सिद्ध करते है जिससे उनके अन्दर आत्मविश्वास जगता है और वह जीवन भर उनके स्मृति पटल पर अंकित भी हो जाता है | लेकिन इसके लिए प्रयोगशाला से सम्बंधित सभी सामग्रियों को खरीदना पड़ता है और उनका सावधानी से रख-रखाव करना पड़ता है जिनका घर में प्रबंध कर पाना बहुत कठिन होता है |

  • पुस्तकालय : आजकल लगभग सभी विद्यालयों में पुस्तकालय होता है जिससे छात्र अपनी आवश्यकतानुसार किताबो को केवल पढ़ते ही नहीं वरन अपने घर भी ले जाते है | यहाँ समाचार पत्र भी आते हैं जिससे सम-सामयिक विषयों की भी जानकारी प्राप्त होती है | यह प्रत्येक घर के स्कूल में इसलिए नहीं संभव है क्योकि यह खर्चीला है और इसको व्यवस्थित करने के लिए अलग से एक बड़े कमरे की भी जरुरत पड़ती है |

  • गतिविधियाँ : जैसा की मैंने पहले ही बताया है कि अधिकांशतः शिक्षण संस्थाएं आजकल गतिविधि आधारित कक्षाओं पर ज्यादा केन्द्रित हो रही है जो कि बच्चों और अभिभावकों दोनों द्वारा पसंद किया जा रहा है | गतिविधि में एक बड़ी जगह और गतिविधि से सम्बंधित संसाधनों की आवश्यकता होती है जिसकी व्यवस्था विद्यालय के लिए आसान है किन्तु हर घर में हो पाना व्यावहारिक नहीं होता है |

  • पाठ्येतर गतिविधियाँ : ऐसी गतिविधियाँ जो पढाई के अतिरिक्त आयोजित की जाती हैं वह पाठ्येतर के अंतर्गत आती हैं जैसे वाद-विवाद, संभाषण प्रतियोगिता, खेलकूद, चित्र कला, नाट्य एवं नृत्य इत्यादि | यह प्रतियोगिताएँ पुब्लिक स्कूल में ही संभव हैं जहां बड़ी मात्र में बच्चे होते हैं उन्ही के बीच में यह प्रतिस्पर्धा होती है जो इनके व्यक्तिव को और भी अधिक निखारती है जो भविष्य में बहुत उपयोगी साबित होती है |


सामाजिक व्यवहार व कौशल का विकास 

पब्लिक स्कूल के एक ही बिल्डिंग में अलग-अलग कम्युनिटी , वर्ग उम्र के बच्चे पढ़ते हैं | जो आपस में खेलते कूदते हैं और साथ ही साथ वह अपने उम्र के बच्चों के साथ कैसे व्यवहार करना है व अपने से बड़ों के साथ कैसे पेश आना है यह स्वाभाविक रूप से अपने आप सीखते जाते हैं | पब्लिक स्कूल में मित्रता, सामूहिक गतिविधि, फील्ड ट्रिप, गतिविधि आधारित लर्निंग के अवसर अनायास प्राप्त हो जाते है | ऐसे बच्चे जो अकेले होते हैं वह ऐसे लाभ से वंचित रह जाते हैं |

नेतृत्व क्षमता का विकास 

हम जब स्कूल में पढ़ रहे होते हैं तो उस दौरान विद्यालय की ओर से हमें कई जिम्मेदारियां दी जाती हैं उनको अगर हम इमानदारी से निभाते हैं तो हमारे अन्दर भिन्न-भिन्न प्रकार के कौशल (स्किल्स) विकसित होते हैं | यह कौशल फण्ड रेजिंग इवेंट, इंटर हाउस इवेंट, स्पोर्ट्स लीडरशिप  के दौरान मॉनिटर ,कप्तान, लीडर व सहायक लीडर के रूप में लीडरशिप या नेतृत्व करने से  क्षमता का विकास होता है| इन कौशलों के विकास से व्यक्तित्व निर्माण होता है और आस -पास के लोग आपके प्रशंसक हो जाते हैं |

मूल्य निर्माण 

नियम एवं अनुशासन आपको एक अच्छा नागरिक बनाते हैं | स्कूल में एक यूनिफार्म में आना , असेम्बली के समय उपस्थित रहना , साफ़ सफाई का ध्यान रखना , होम वर्क पूरा करना और टीचर्स की आज्ञा का पालन करना इत्यादि हमारे जीवन में मूल्य निर्माण करते हैं | यही सब चीजें हमें दूसरों से अलग बनाती हैं | हम बड़े होने पर इन सभी बातो को याद कर गर्व महसूस करते हैं | विभिन्न अनुभवी शिक्षकों द्वारा अध्यापन  एवं कठोर व सख्त शिक्षको का सानिध्य भविष्य में सख्त बॉस को फेस करने में सहायक साबित होता है |

स्कूल के समय की मधुर स्मृतियाँ 

जब हम बड़े हो जाते हैं तो ख़ासकर स्कूल में बिताए गए समय की याद आती है | जैसे कक्षा में पढने वाले छात्रों के साथ मित्रता उनके साथ मिल बाँटकर खाना,उनके साथ चुटकुले साझा करना व टीचर्स द्वारा होम वर्क न करने या गलतियों पर सजा इत्यादि |

About the author

Anand Mishra is working in Pratham Education Foundation and works on aspects of Partnership & Communications of the teacher capacity development portal: Gurushala. Any views expressed are personal.