Research & Policy PISA- क्या है?
By Mohammad Ashghal Khan
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पीसा क्या है?

पीसा जिसका शाब्दिक अर्थ ‘’ द प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट’’ है, जिसको एक  अंतर्राष्ट्रीय संस्था आर्थिक सहयोग व विकास संगठन द्वारा सन 2000 में आयोजित किया गया था! यह एक तरह का मूल्यांकन पैमाना है जिसके आधार पर 15 वर्ष आयु के छात्रों का तीन कौशलों पर मूल्यांकन किया जाता है जिसमें ‘पढ़ना (रीडिंग), गणित (मैथ), व वैज्ञानिक दक्षताएं (साइंटिफिक लिटरेसी) शामिल है! इसे एक शोध के रूप में इस संस्था ने शुरू किया था जिसका मुख्य उद्देश्य विश्व स्तर पर शिक्षा नीतियों का विश्लेषण किया जा सके और प्रतिभागियों के प्रदर्शन के आधार पर सुझाव दिए जा सकें ! ये संस्था प्रति तीन वर्ष में इस तरह के मूल्यांकन का आयोजन करती है जिसमें कोई भी देश भाग लेने के लिए स्वतंत्र होता है! इस मूल्यांकन प्रकिया में अब तक 80 से अधिक देशों ने अपनी प्रतिभागिता दर्ज कराई है! इसका अगला मूल्यांकन 2021 में आयोजित किया जायेगा जिसमें भारत की और से चंडीगढ़ के सरकारी स्कूल भाग लेंगे ! इससे पहले भारत ने वर्ष 2009 में इस मूल्यांकन प्रतियोगिता में भाग लिया था जिसमें भारत को 73 अन्य देशों के मुकाबले में 72वां स्थान प्राप्त हुआ था!

 

पीसा किस तरह कौशलों का मूल्यांकन करता है?

पीसा मूल्यांकन प्रतियोगिता में भाग लेने वाले छात्रों के लिए शिक्षा जगत के विशेषज्ञयों जो कि आर्थिक सहयोग व विकास संगठन के मेम्बर भी होते हैं, पढ़ना (रीडिंग), गणित (मैथ), व वैज्ञानिक दक्षताओं (साइंटिफिक लिटरेसी) पर आधारित प्रश्नपत्र बनाते हैं जिसमें छात्रों के द्वारा क्लासरूम में अर्जित किये ज्ञान का मूल्यांकन किया जाता है कि उन्होंने अपने स्कूल में जो भी सीखा उसका दैनिक जीवन में वह किस प्रकार उपयोग कर पाते हैं! अर्थात, वह ज्ञान उन्हें किस प्रकार उनके दैनिक जीवन में घटित होने वाली प्रक्रियाओं एवं गतिविधियों को हल करने में सहायता प्रदान करता है!? इस प्रतियोगिता में जो देश सर्वाधिक अंक या सर्वोच्च पद प्राप्त करते हैं उनकी शिक्षा प्रणाली को समावेशी यानी एक विकासशील/प्रगतिशील विकल्प के रूप में देखा जाता है !
 

भारत में पीसा की महत्वता क्या है?

यदि हम नई शिक्षा नीति 2021 के आधार पर देखने का प्रयास करें तो हम ये जान पाएंगे कि नई शिक्षा नीति में छात्रों के उन कौशलों पर ध्यान केन्द्रित करने की कोशिश की गई है जिसके आधार पर स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र भविष्य में अपने अस्तित्व को बनाये रखने में कामयाब हो सकें एवं अपने जीवनयापन के लिए रोज़गार अर्जित कर सकें! आजके इस बदलते युग को ध्यान में रखते हुए अगर देखने का प्रयास करें तो जिस तरह के कौशलों की आवश्यकता रोज़गार पाने हेतु आवश्यक हैं शायद उस स्तर पर इन कौशलों का प्रसार स्कूलों में नहीं हो पा रहा है! यदि पीसा जैसे मूल्यांकन हमारे स्कूलों में एक महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में चुने एवं उपयोग किये जाते हैं तो हम अपने स्कूलों में उन नए आयामों का विकास कर सकते हैं जिससे छात्रों की पढ़ने, गणितीय, एवं वैज्ञानिक दक्षताओं का विकास संभव हो सके! उदहारण के लिए, कक्षाओं में अध्यापक ऐसी नई नई गतिविधियों, शिक्षण विधियों, एवं माध्यमों से पढ़ाने का प्रयास करेंगे जिससे छात्रगण न सिर्फ कक्षरूपी ज्ञान को समझ रहे होंगे बल्कि उस ज्ञान को वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से भी समझने में पारंगत हो रहे होंगे जो उन्हें रचनात्मक (क्रिएटिव), परिवर्तनात्मक (इनोवेटिव), सहयोगात्मक (कोलैबोरेटिव), एवं उत्पादक व्यक्ति (प्रोडक्टिव) बनाने में सहायता प्रदान कर रहा होगा !

About the author

Mohammad Ashghal Khan is a Gandhi Fellow working with the schools of Jhunjhunu, Rajasthan. He has been particularly working on PISA and developing the Life Skills of adolescents through Project-Based Learning. Any views expressed are personal.