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बात 2019 की है । एक दिन मैं कक्षा 7 में अंग्रेजी शिक्षण कर रहा था । प्रकरण था 'अंग्रेजी में बातचीत’ । बच्चे काफी रुचि लेकर मेरी बात सुन रहे थे । और वैसे भी अंग्रेजी भाषा के प्रति तो सबका आकर्षण एक जैसा होता है । स्वभाविक है बच्चों का आकर्षण भी ऐसा ही होता है । मैंने बच्चों के साथ उनके नाम को एक वाक्य के साथ कैसे बताना है इस बात पर शुरुआत की । जैसे :- मेरा प्रश्न था व्हाट इज योर नेम ? बच्चे बारी बारी से अपने नाम के साथ उत्तर दे रहे थे । अचानक एक बच्चा मेरे पास आया और उसनें कुछ ऐसा कहा कि मैं नि:शब्द रह गया । बच्चा मेरे पास आया और बोला "सर , मैं गो टू वाटर ड्रिंक" । आप सोंच रहे होंगे कि ये भी कोई चौंकाने वाली बात है । लेकिन मेरे लिए थी । चौंकाने वाली बात इसलिए थी कि जिस बच्चे नें कभी पानी पीने जाने के लिए अनुमति नहीं ली उस बच्चे नें पानी पीने जाने के लिए आज अनुमति ली थी और वो भी अंग्रेजी में । दरअसल कक्षा में मेरे बच्चों नें ही मुझसे राय करके एक नियम बनाया था कि यदि किसी को पानी पीने या टॉयलेट जाना है तो वह अनुमति अंग्रेजी में ही लेगा । सभी बच्चे भी सहमत थे और मैं सहमत भी था और खुश भी, परंतु अंदर से दुखी भी । दुखी इसलिए कि बच्चों ने ये नियम स्वयं बनाया था और यदि किसी बच्चे को जोर से टॉयलेट आयी और वह अंग्रेजी में अनुमति नहीं ले पाया तब क्या होगा ?
खैर इसका हल उन्होंने स्वयं निकाल रखा था । मेरा घंटा आने से पहले ही वे सारी क्रिया करके बैठते थे ताकि बाहर जाना ही न पड़े और अंग्रेजी बोलकर अनुमति ही न लेनी पड़े । खैर बात सिखाने की थी तो मुझे सिखाकर ही दम लेना था । वह बच्चा जब लौटकर आया तब उसने कक्षा के अंदर आने हेतु अनुमति बिल्कुल सही ली । वह बोला, "मे आयी कम इन सर ?" । मुझे एहसास होने लगा था कि मेरे बच्चों में व्यवहार परिवर्तन हो रहा था उन्होंने सीखना शुरू कर दिया था । यह प्रक्रिया मैने स्वयं शुरू की । मैं जब भी कक्षा में जाता था मैं स्वयं भी बच्चों से बोलता था , मे आयी कम इन ? और बच्चे बड़े जोश और मासूमियत से जवाब देते थे ,"यस सर" । यह प्रक्रिया पंद्रह दिन चली और मेरी कक्षा का प्रत्येक बच्चा अब मेरे साथ अंग्रेजी में वार्तालाप की शुरुआत कर चुके । छोटे-छोटे वाक्यों में उन्होनें इस जटिल प्रक्रिया को स्वरूप देना आरम्भ कर दिया था । वह बच्चा भी मेरे साथ अंग्रेजी में बोलता था ,"हाऊ आर यू सर ? मैं भी टर्न जवाब देता , "आयी एम फाइन" । कोविड-19 के प्रकोप के बाद 04 जुलाई को जब पता चला कि मैं वृक्षारोपण करने हेतु विद्यालय में आया हूँ , कई बच्चों के साथ वह बच्चा भी आया और उसने बड़े विनम्र स्वर में गुड मॉर्निंग कहा । मेरे साथ सेल्फी भी खिंचाई जो इस लेख में एक कोने में लगी है । मुझे मेरी योजना सफल होती नजर आयी की अंग्रेजी भाषा के प्रति सीखने की चाह जो जग गयी थी मेरे बच्चों में । वह बच्चा कोई और नहीं मेरे विद्यालय का एक नटखट बालक श्याम बिहारी है जिसकी आवाज सभी अध्यापक पूरे दिन में एक या दो बार सुन पाते थे ।
Satya Pal Singh is an Academic Resource Person or a teacher educator in India. Any views expressed are personal.