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धर्मनिरपेक्षता अथवा पंथनिरपेक्षता का सामान्य अर्थ है धर्म के प्रति तटस्थ दृष्टिकोण अपनाना। विश्व की सभी सभ्यता तथा संस्कृति में मनुष्य के दैनिक जीवन में धर्म की महत्वपूर्ण हस्तक्षेपकारी भूमिका रही है, परंतु कालांतर में विभिन्न कारणो से मनुष्य के सांसारिक क्रियाकलापों तथा उसके जीवन से जुड़ी हुई समस्याओं के समाधान हेतु धर्म की भूमिका घटती गई। मनुष्य के सांसारिक समस्याओं के समाधान तथा जीवन के विभिन्न क्रियाकलापों में तकनीकी तथा वैज्ञानिक प्रगति का प्रभाव स्पष्ट रूप से पड़ने लगा, परिणामस्वरूप उसका जीवन पूर्णतः धार्मिक रीतियों से प्रभावित तथा संचालित नहीं रहा।
15वीं 16वीं शताब्दी में पश्मिमी यूरोप में पुनर्जागरण तथा सुधार [Renaissance and Reformation], तथा 18वीं 19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रान्ति [Industrial Revolution], के कारण, समाज में तीन महत्वपूर्ण बदलाव हुए:
1. व्यक्ति के जीवन में विज्ञान तथा तकनीकी कही भूमिका बढ़ गई, तथा व्यक्ति अपनी समस्याओं को वैज्ञानिक प्रगति से हल करने हेतु पेरित हुआ। परिणामस्वरूप व्यक्ति की सोंच में वैज्ञानिकता का समावेश हुआ।
2. मानवतावादी विचारधारा का सूत्रपात हुआ, जिसमें व्यक्ति के परलोक की चिंताओं के बदले, इस लोक में ही कल्याण पर बल दिया जाने लगा।
3. अंतर धार्मिक सम्मिलन हुआ, अर्थात विभिन्न धर्मावलंबियों के परस्पर एक ही जगह पर निवास तथा कार्य करने से उनके बीच धार्मिक सहिष्णुता का सूत्रपात हुआ।
धार्मिक दूरियां कम हुई परिणामस्वरू धार्मिक समाज[Sacred Society], धर्मनिरपेक्ष समाज [Secular Society] में बदलने लगा।
भारत में धार्मिक सहिष्णुता का तत्व उसकी आध्यात्मिकता की देन है। आधुनिक भारत समाज के धर्मनिरपेक्षीकरण, भारत में राजाराममोहन राय के नेतृत्व में शुरू हुए पुनर्जागरण आंदोलन तथा विभिन्न सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप विकसित हुआ। ये सुधार आंदोलन यद्यापि धर्म में सुधार हेतु शुरू हुए थे, परंतु इनके दो महत्वपूर्ण परिणाम हुए:
1. धार्मिक आडंबर, पाखंड, तथा शोषण के विरूद्ध सक्रिय तार्किक संघर्ष छेड़ा गया। इसका परिणाम यह हुआ कि धर्म की बुराइयों के विरूद्ध जनमत तैयार हुआ। धार्मिक पाखंड, तथा शोषण के अंत के लिए मानवीय कल्याण का दृष्टिकोण अपनाया गया। परिणामस्वरूप धार्मिक सहिष्णुता का प्रसार हुआ जिसने धर्म निरपेक्ष समाज के गठन हेतु नींव का कार्य किया
2. पाश्चात्य तथा वैज्ञानिक शिक्षा पद्धति की वकालत की गई। यद्यापि इस संबंध में ब्रिटिश सरकार की मंशा, भारत में उपनिवेशवाद की जड़ों को गहरा करना था, परंतु भारत को अप्रत्यक्ष रूप से इसका यह लाभ हुआ कि, भारत नवीन विचारों, तकनीकों, वैज्ञानिक प्रगति से जुड़ गया, जिसने पंरपरागत कट्टर धार्मिक विचारों को खत्म करने का काम किया।
स्वंतत्रता के पश्चात भारतीय संविधान ने पंथनिरपेक्षता का राजनैतिक आदर्श स्वीकार कर लिया। परिणामस्वरूप धर्म के आधार पर राष्ट्र का गठन किए जाने, और व्यक्त के राजनैतिक जीवन में धर्म का हस्तक्षेप की संभावना समाप्त हो गई। साथ ही साथ चूँकि भारत सदियों से विभिन्न धर्मावलंबियों केा आश्रम प्रदान करता आ रहा है, और वास्तविक रूप से अनेक धार्मिक और दार्शनिक विकास की जन्मभूमि रहा है, इसलिए संविधान में विभिन्न धर्मावलंबियों को अपने धार्मिक विश्वासों, मान्यताओं, और सांस्कृतिक जीवन को पूरी स्वतंत्रता से व्यवहार किए जाने की आजादी भी दी गई। जिस धार्मिक सहिष्णुता का बीज हम भारतीय अद्वैतवादी दर्शन की महानता में पाते हैं, भारतीय संविधान ने उसे राजनीतिक रूप से साकार किया।
Kalpana Rajauriya is an educator in India. Any views expressed are personal.