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एक अध्याय
शिक्षा पूर्ण मानव श्रमता को प्राप्त करने, एक न्यायसंगत और न्यापूर्ण समाज के विकास और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिए मूलभूत आवश्यकता है। शिक्षा वह उचित माध्यम है, जिससे किसी भी देश की समृद्धप्रतिभा, संसाधनों का सर्वोत्तम विकास, समाज, राष्ट्र और विश्व की भलाई के लिए किया जा सकता है। आने वाले वर्षे में भारत दुनिया का सबसे युवा जनसंख्या वाला देश होगा और इन युवाओं को उच्चतर गुणवŸापूर्ण शैक्षिण अवसर उपलब्ध कराने पर ही भारत का भविष्य निर्भर करेगा। इस को आधार मानते हुये
केंद्र सरकार ने कैबिनेट बैठक कर नई शिक्षा नीति को 29 जुलाई 2020 मंजूरी दी। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस नई शिक्षा नीति की घोषणा करते हुए केंद्र सरकार के प्रवक्ता और वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इसे 'ऐतिहासिक' बताया, जबकि मानव संसाधन विकास मंत्री (अब शिक्षा मंत्री) रमेश पोखरियाल निशंक ने इसे शिक्षा के क्षेत्र में नई युग की शुरूआत बताई। भारत में 34 साल बाद नई शिक्षा नीति आई है। महान शिक्षाविद् के.कस्तूरीरंगन की कमेटी ने एक नए शिक्षा नीति का मसौदा तैयार किया, जिसे सार्वजनिक कर केंद्र सरकार ने आम लोगों से भी सुझाव मांगे। रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि इस ड्राफ्ट पर आम से खास लाखों लोगों के सुझाव आए, जिसमें विद्यार्थी, अभिभावक, अध्यापक से लेकर बड़े-बड़े शिक्षाविद्, विशेषज्ञ, पूर्व शिक्षा मंत्रियों और राजनीतिक दलों के नेता शामिल थे। इसके अलावा संसद के सभी सांसदों और संसद की स्टैंडिंग कमेटी से भी इस बारे में सलाह-मशविरा किया गया, जिसमें सभी दलों के लोग शामिल थे। इस शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किए गए हैं। लेकिन कुछ अहम बदलाव इस तरह हैं। अगर सबसे पहले स्कूली शिक्षा की बात की जाए तो स्कूली शिक्षा के मूलभूत ढांचे में ही एक बड़ा परिवर्तन आया है।
10+2 पर आधारित हमारी स्कूली शिक्षा प्रणाली को 5+3+3+4 के रूप में बदला गया है। नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (Early Childhood Care and Education -ECCE) की एक मजबूत बुनियाद को शामिल किया गया है जिससे आगे चलकर बच्चों का विकास बेहतर हो। इस तरह शिक्षा के अधिकार (RTE) का दायरा बढ़ गया है। यह पहले 6 से 14 साल के बच्चों के लिए था, जो अब बढ़कर 3 से 18 साल के बच्चों के लिए हो गया है और उनके लिए प्राथमिक, माध्यमिक और उत्तर माध्यमिक शिक्षा अनिवार्य हो गई है। 5+3+3+4 के प्रारूप में पहला पांच साल बच्चा प्री स्कूल और कक्षा 1 और 2 में पढ़ेगा, इन्हें मिलाकर पांच साल पूरे हो जाएंगे। इसके बाद 8 साल से 11 साल की उम्र में आगे की तीन कक्षाओं कक्षा-3, 4 और 5 की पढ़ाई होगी। इसके बाद 11 से 14 साल की उम्र में कक्षा 6, 7 और 8 की पढ़ाई होगी। इसके बाद 14 से 18 साल की उम्र में छात्र 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई कर सकेंगे। यह 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई बोर्ड आधारित होगी, लेकिन इसे खासा सरल नई शिक्षा नीति में बनाया गया है। शिक्षा मंत्रालय के अनुसार बोर्ड परीक्षा को दो भागों में बांटने का प्रस्ताव है, जिसके तहत साल में दो हिस्सों में बोर्ड की परीक्षा ली जा सकती है। इससे बच्चों पर परीक्षा का बोझ कम होगा और वह रट्टा मारने की बजाय सीखने और आंकलन पर जोर देंगे।" स्कूली शिक्षा में एक और अहम बदलाव के रूप में 'मातृभाषा' को शामिल किया गया है, जिस पर खासा विवाद हो रहा है। नई शिक्षा नीति के अनुसार अब बच्चे पहली से पांचवी तक की कक्षा या संभवतः आठवीं तक की कक्षा अपनी मातृभाषा के माध्यम में ही ग्रहण करेंगे। इसके अलावा यह भी कहा गया है कि अगर आगे की कक्षाओं में भी इसे जारी रखा जाता है तो यह और बेहतर होगा। शिक्षा मंत्रालय का कहना है कि बच्चा अपनी भाषा में चीज़ों को बेहतर ढंग से समझता है, इसलिए शुरूआती शिक्षा मातृभाषा माध्यम में ही होना चाहिए।
मातृभाषा के संबंध में कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या जब बच्चा प्राथमिक कक्षाओं को पास कर आगे बढ़ेगा और उन्हें आगे की कक्षाओं में हिंदी या अंग्रेजी माध्यम में विषयों को पढ़ाया जाने लगेगा, तब वे उसे सही ढंग से समझ पाएंगे या उच्च कक्षाओं में वे अंग्रेजी माध्यम के छात्रों से प्रतियोगिता कर पाएंगे? इसके अलावा एक सवाल यह भी उठता है कि क्या स्थानीय या मातृभाषा माध्यम में पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षण सामग्री उपलब्ध होंगे।
इस बिन्दू का सबसे चुनौतिपूर्ण पहलू यही है की इसका पूर्णतया समर्थन तभी किया जायेगा जब सरकार इसे प्राईवेट और महंगे स्कूलों में भी लागू करे, क्यों की प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई अंग्रेजी के माध्यम से होती है। इससे समाज में भेद-भाव बढेगा। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्याथियों के लिए आगे की पढ़ाई अंग्रेजी के माध्यम से करने में बहुत कठिनाई आयेगी।
नई शिक्षा नीति में इस बात पर भी जोर है कि जो भी बच्चा 12वीं तक की प्रथम चरण की शिक्षा पूरी कर लेता है, उसके पास कम से कम एक स्किल जरूर हो ताकि जरूरत पड़ने पर वह इससे रोजगार इस बिन्दू का सबसे चुनौतिपूर्ण पहलू यही है की इसका पूर्णतया समर्थन तभी किया जायेगा जब सरकार इसे प्राईवेट और महंगे स्कूलों में भी लागू करे, क्यों की प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई अंग्रेजी के माध्यम से होती है। इससे समाज में भेद-भाव बढेगा। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विद्याथियों के लिए आगे की पढ़ाई अंग्रेजी के माध्यम से करने में बहुत कठिनाई आयेगी। सरकार ने कहा कि इसके लिए सभी स्कूलों में इंटर्नशिप की व्यवस्था की जाएगी और बच्चे स्थानीय प्रतिष्ठानों में जाकर अपने मन का कोई स्किल सीख सकेंगे। इसके साथ ही सरकार ने इस शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा को भी लचीला बनाने की कोशिश की है, जिसकी सबसे प्रमुख विशेषता मल्टीपल एंट्री-एक्जिट सिस्टम है। मसलन अगर कोई छात्र ग्रेजुएशन में प्रवेश लेकर सिर्फ एक साल का ही कोर्स पूरा करता है, तो उसे इसके लिए सर्टिफिकेट दिया जाएगा।
वहीं दो साल पूरा करने वालों को डिप्लोमा और तीन साल पूरा करने वालों को ग्रेजुएशन की डिग्री दी जाएगी। वहीं उच्च शिक्षा और शोध की इच्छा रखने वाले छात्र चौथे साल का कोर्स करेंगे। इसके साथ ही अब तक तीन साल का होने वाला ग्रेजुएशन अब चार साल का हो जाएगा। वहीं एमए अब सिर्फ एक साल का होगा, जबकि रिसर्च करने वाले दो साल की एम.फिल. का कोर्स ना कर सीधे पीएचडी कर सकेंगे। हालांकि कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भी छात्र नेट निकालने के बाद संबंधित योग्यता होने पर सीधे पीएचडी में प्रवेश कर जाते हैं। इसलिए यह सरकार का बेहतर कदम है, इससे समय, संसाधन और पैसे तीनों की बचत होगी। लेकिन कुछ शोध करने वाले विद्यार्थियों के अनुसार सरकार के इस कदम से इससे शोध की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा क्योंकि पहले मास्टर्स और फिर एमफिल से लोग शोध के लिए अपने आप को पूरी तरह से तैयार करते हैं।" "एक तरफ जहां ग्रेजुएशन में सरकार मल्टी एंट्री-एग्जिट की बात कर रही, वहीं पीएचडी के लिए लंबा प्रोसेस बनाने जा रही है। भारतीय परिस्थितियों में किसी भी छात्र के लिए सात साल का पीएचडी करना संभव नहीं होगा। यह असल रूप में समय और संसाधन की बर्बादी होगी।"
नई शिक्षा नीति मे मल्टीपल डिस्प्लिनरी एजुकेशन की बात कही गई है। इसका मतलब यह है कि कोई भी छात्र विज्ञान के साथ-साथ कला और सामाजिक विज्ञान के विषयों को भी दसवीं-बारहवीं बोर्ड और ग्रेजुएशन में चुन सकता है। इसमें कोई एक स्ट्रीम मेजर और दूसरा माइनर होगा। उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने कहा कि कई छात्र ऐसे होते हैं जो विज्ञान के विषयों में रूचि के साथ-साथ संगीत या कला भी पढ़ना चाहते हैं। उनके लिए यह काफी फायदेमंद होगा। इसके अलावा विभिन्न शिक्षण संस्थान भी मल्टी डिस्पिलनरी होंगे इसका अर्थ यह है कि आईआईटी और आईआईएम में इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के अलावा अन्य विषयों को भी पढ़ाया जा सकेगा। हालांकि इसकी शुरूआत पहले से ही हो चुकी है।
हालांकि नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि सरकार उच्च शिक्षा पर अधिक से अधिक खर्च करेगी, ताकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा दिया जा सके। इसके लिए सरकार ने जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने की बात नई शिक्षा नीति में कही है। सरकार ने नई शिक्षा नीति में जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करने की बात कही है, इस पर भी काफी बातें हो रही हैं। दरअसल हर शिक्षा नीति में यह लक्ष्य रखा जाता है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि कभी भी इस लक्ष्य की तरफ नहीं बढ़ा जा सका। सरकार के कार्यकाल में लगातार शिक्षा बजट को कम किया गया है और यह अभी 4 फीसदी से भी कम है। तो ऐसे में कैसे सरकार से उम्मीद की जा सकती है।
इस नई शिक्षा नीति में यह भी कहा गया है कि शिक्षा की गुणवत्ता में बढ़ावा देने के लिए शिक्षामित्र, एडहॉक, गेस्ट टीचर जैसे पद धीरे-धीरे समाप्त किए जाएंगे और बेहतर चयन प्रक्रिया का गठन कर स्कूली और उच्च शिक्षा दोनों में नियमित और स्थायी अध्यापकों की नियुक्ति की जाएगी। लेकिन हमारे बहुत से शिक्षण संस्थानों में पहले से ही नियुक्ति प्रक्रिया रूकी हुई है, अब एडहॉक और गेस्ट टीचर की व्यवस्था खत्म कर सरकार कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति करना चाहती है, जिनको प्रति क्लास के आधार पर भुगतान मिलेगा और उन्हें बीमा, छुट्टी, पेंशन आदि जैसी कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं दी जाएगी। राज्यों की स्थित तो बहुत खराब है वहॉ सरकारी स्कूलों में वर्षें से कई विषय के पद रक्त है, जिनमें अभी तक नई भर्ती नहीं हो सकी है। लेकिन अगर सरकार नियमित शिक्षकों की नियुक्ति करती है तो यह और अच्छी बात है। आगे के अध्यायें मै इस नई शिक्षा नीति और नई चुनौजियॉ पर अपने और विचार रखूगॉ।
श्री प्रदीप नेगी, प्रवक्ता-अर्थशास्त्र, राजकीय इण्टर कालेज भेल, हरिद्वार. All views expressed are personal.