भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा इस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि है। वर्ष 1991 में हुए आर्थिक सुधारों के बाद से राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में भी वृद्धि हुई लेकिन दुख की बात यह है कि कृषि क्षेत्रों में कोई नया आर्थिक सुधार नहीं हुआ। किसानों को अपनी उपज को मंडी में बेचना अनिवार्य था और इसके लिए उसे कमीशन एजेंटों को कमीशन देना पड़ता था। मंडियों में कमीशन एजेंटए बिचौलियों के साथ सांठगांठ करके किसानों का ना केवल उनकी उपज के उचित मूल्य से वंचित करते, बल्कि उने उस सेवा के बदले में कमीशन भी वसूल किया करते थे। मंडियों में भंडारण की भी व्यवस्था ठीक नहीं थी ।
सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था को अन्तरराष्ट्रीय स्वरूप देने के वर्तमान परिवेश और उद्योगों के निजीकरण की इस अवस्था में भी कृषि को इतनी प्राथमिकता प्रदान कर रही है। केंद्र सरकार ने इसी उद्देश्य से हाल में तीन कृषि कानून बनाए हैं। पहला कानून किसानों को यह अधिकार देता है कि वह अपनी उपज को स्वेच्छा से देश भर में किसी को भी भेज सकते हैं। दूसरा कानून कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का है यानी अनुबंधित कृषि इसके तहत किसान उच्च गुणवत्ता वाले अपने उत्पाद को पूर्व निर्धारित प्रीमियम मूल्य पर किसी खाद्य प्रसंस्करण कंपनी या निर्यातक को सीधा बेच सकते हैं और तीसरा कानून में आवश्यक वस्तु अधिनियम एपीएमसी 1955 का उपयोग अब आपात स्थिति तक सीमित होगा यानी आपात स्थिति से कृषि उत्पादकों के भंडारण की सीमा नहीं सौंपी जा सकती इससे भंडारण के मोर्चे पर निवेश बढ़ेगा जो निर्यात केंद्रित खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए बहुत आवश्यक है । इससे किसानों के उत्पादों की मांग भी बढ़ेगी दुर्भाग्य से आर्थिक सुधारों का विरोध भारत के भारत के पंजाब हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान कर रहे हैं जिनको विपक्ष के कुछ नेताओं द्वारा भड़काया जा रहा है या गुमराह किया जा रहा है। जब की मंडियों को समाप्त करने का अधिकार राज्य के पास है और एपीएमसी को समाप्त करने की बात सरकार ने नहीं कही है, उन्होंने कहा कि एपीएमसी के माध्यम से किसानों की उपज की खरीद जारी रहेगी। इसके इसके साथ अनुबंधित कृषि भी भारत में 10 वर्षों से हो रही है कृषि सुधारों के विरोध की जड़ें भी पंजाब और हरियाणा से जुड़ी हुई हैं जहां केंद्र सरकार एसएमपी पर गेहूं और धान की भारी खरीद करते हैं साथ पंजाब सरकार भी एमएसपी का 3% मंडी शुल्क और 3% ग्रामीण विकास शुल्क लेती है, जिसका पूरा भार केंद्र सरकार के खजाने पर पड़ता है, इसीलिए पंजाब सरकार और राज्यों तथा बिचौलियों द्वारा इन तीनों एक्ट का विरोध किया जा रहा है।
नए कृषि कानूनों को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों ने जैसा रवैया अपना लिया है वह इसलिए विचित्र है, क्योंकि पहले यही दल उस उसी तरह के सुधारों की मांग किया करते थे जैसे इन कानूनों में किए गए हैं। इन कानूनों के विरोध में किसानों को उकसा बढ़ाकर राजनीतिक दल केवल कृषि सुधारों की बात ही नहीं कर रहे थे बल्कि उन्हें अपने घोषणापत्र का हिस्सा भी बनाते थे कृषि सुधारों की चर्चा लगभग दो दशकों से हो रही है अनेक समितियां आयोग और विशेषज्ञ कृषि में बुनियादी सुधारों की वकालत वक्त की जरूरत बता चुके हैं पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ किसान संगठनों को नए कृषि कानूनों पर कुछ आपत्ति हो सकती है लेकिन अपनी इस आपत्तियों के आधार पर वे यह जिद पकड़ कर नहीं बैठ सकते कि तीनों कृषि कानूनों को रद्द किया जाए यहां एक जबरदस्ती वाली मांग है जो बिल्कुल भी ठीक नहीं है, अगर किसी कानून में से आपको कोई आपत्ति है, तो उससे किसानों को सरकार से बात करनी चाहिए जिसका समाधान हो सकता है।
वर्ष 1991 से 2015 की अवधि में पैसों की लिहाज से देखें तो किसानों की आय 9 गुना हो गई है इस अवधि के दौरान मुद्रास्फीति के पैमाने पर ग्रामीण भारत के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में 4.5 गुना वृद्धि हुई इसका मतलब यह हुआ कि वास्तविक रूप से किसानों की क्रय शक्ति दुगनी से भी कम बढ़ी है, जबकि इस अवधि में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय लगभग 4 गुना तक बढ़ चुकी है। यानी औसत नागरिकों की आमदनी की तुलना में किसानों की आय कम रफ्तार से बढ़ रही है ऐसी स्थिति में किसानों की समस्याओं पर हमें विचार करना होगा इसके लिए नई हरित क्रांति की दिशा की और हमें आगे बढ़ना होगा। जिसमें तकनीक और उद्यम की भूमिका महत्वपूर्ण होगी कृषि के खेतों में काम आने वाली चीजें जैसे खाद कीटनाशक पानी और बिजली आदि को हमें किसानों तक सस्ते दामों पर उपलब्ध कराना होगा। इसके साथ मौबाईल इंटरनेटए, जैविक खेती, मौसम नियंत्रण खेती, तथा आधुनिक तकनीकों का प्रयोग हमें कृषि कार्य में करना होगा इसे कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ सके इसके साथ किसानों की पहुंचना न केवल भारतीय बाजारों बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक भी होनी चाहिए, जिससे किसानों को उनकी फसल का उचित दाम प्राप्त हो सके हमें ऐसे उद्योगों की जरूरत है जो भारतीय कृषि व्यवस्था को गति और सही दिशा दे सकें । भारत एक ऐसा देश है जहां दुनिया में सबसे ज्यादा किसान है, इसके साथ सरकार को चाहिए कृषि में उत्पादकता को बढ़ने के लिए कृषि अनुसंधान, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, जैव-प्रौद्योगिकी, फसल विज्ञान, बागवानी, पुष्प-कृषि, मात्स्यिकी, दुग्ध व पशुपालन, सिंचाई सुविधाओं के विस्तार और रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों आदि में निवेश करना चाहिए। इसके साथ हम कृषि उत्पादों की गुणवत्ता और उसके प्रबंध ठीक से विकास कर सकें और युवाओं के लिए स्वरोजगार भी पैदा कर सकें इसके लिए किसानों को प्रशिक्षण, संसाधन, समय&समय पर मिलने चाहिए। अब समय आ गया है कि जब हम स्वीकार करें कि किसानों की दशा सुधारने के लिए हमें ग्रामीण भारत में विभिन्न प्रकार के काम धंधों का सर्जन करना होगा ताकि अमारे अन्नदाता खुशहल हो सके। निष्कर्ष यह निकलता है कि इतनी विशाल उपजाऊ भूमि, वर्षभर धूप, प्रचुर जल संसाधनों और समर्पित वैज्ञानिकों की फौज व करोड़ों मेहनती किसानों वाला यह देश भारत सहज ही विश्व की एक कृषि शक्ति बन सकता है।